इनमें पश्मीना, सोज़नी, क्रूवेल, चेन स्टिच, कानी शॉल, कालीन और विभिन्न हथकरघा कपड़े शामिल हैं, जो क्षेत्र की समृद्ध शिल्प विरासत को दर्शाते हैं
विभाग द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, यह राशि, जो पूरी तरह से सरकारी खजाने में जमा है, 400 से ज़्यादा विभागीय प्रशिक्षण केंद्रों में प्रशिक्षुओं द्वारा निर्मित हस्तशिल्प और हथकरघा वस्तुओं की एक विस्तृत श्रृंखला की बिक्री से प्राप्त हुई है। इनमें पश्मीना, सोज़नी, क्रूवेल, चेन स्टिच, कनी शॉल, कालीन और विभिन्न हथकरघा कपड़े शामिल हैं, जो इस क्षेत्र की समृद्ध शिल्प विरासत को दर्शाते हैं।
विभाग के प्रवक्ता ने कहा, "यह इस बात का एक आदर्श उदाहरण है कि किस प्रकार सरकारी धन को पुनः प्रणाली में लाया जा रहा है और शिल्प क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए उपयोग किया जा रहा है।"
विभाग इस उपलब्धि को पारंपरिक कौशल को पोषित करने और उभरते कारीगरों की आय क्षमता को बढ़ाने के अपने प्रयासों की पुष्टि मानता है। प्रशिक्षण में व्यावहारिक, बाज़ार-उन्मुख उत्पादन को एकीकृत करके, केंद्रों का उद्देश्य प्रशिक्षुओं को न केवल तकनीकी ज्ञान, बल्कि व्यावसायिक अंतर्दृष्टि से भी लैस करना है।
प्रशिक्षण के बुनियादी ढाँचे को आधुनिक बनाने, समकालीन डिज़ाइनों को लागू करने और विभागीय बिक्री केंद्रों तथा राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भागीदारी के माध्यम से बाज़ार संपर्कों को मज़बूत करने की योजनाएँ भी चल रही हैं। विभाग ने कहा कि ये कदम प्रशिक्षुओं द्वारा निर्मित उत्पादों के लिए व्यापक बाज़ार पहुँच सुनिश्चित करने में मदद करेंगे और साथ ही कश्मीर की विशिष्ट शिल्प विरासत की रक्षा भी करेंगे।
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