विशेषज्ञों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में मादक द्रव्यों के सेवन से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए यह पहला पाठ्यक्रम एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह अपनी तरह का पहला पाठ्यक्रम है जो राज्य में मादक द्रव्यों के सेवन के बढ़ते मामलों के बीच एक जरूरी पहल के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह डिप्लोमा प्रशिक्षित, नैतिक और साक्ष्य-आधारित देखभाल प्रदान करने में सक्षम व्यसन परामर्शदाताओं की नई श्रृंखला तैयार कर सकता है।
पाठ्यक्रम में प्रवेश स्नातकोत्तर डिग्रीधारी उम्मीदवारों के लिए खुला है, जिन्होंने किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान या सामाजिक कार्य में न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों के साथ डिग्री प्राप्त की हो। चयन लिखित प्रवेश परीक्षा के माध्यम से किया जाएगा, जिसकी तिथि जल्द घोषित की जाएगी।
यह डिप्लोमा कोर्स मौजूदा शैक्षणिक सत्र से शुरू किया जा रहा है और प्रतिवर्ष 20 विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाएगा।
GMC श्रीनगर में नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी डॉ. यासिर हसन राथर ने इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि राज्य में नशा मुक्ति सेवाओं में सबसे बड़ी चुनौती प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी है। उन्होंने कहा, "कई बार व्यक्तियों को इलाज के नाम पर शारीरिक और आर्थिक शोषण का सामना करना पड़ता है। यह डिप्लोमा ऐसी समस्याओं को कम करने में मदद करेगा।"
डॉ. राथर ने बताया कि प्रशिक्षित पेशेवरों की सहायता से स्कूलों, मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों, नशा मुक्ति केंद्रों और पुनर्वास संस्थानों में बहुआयामी हस्तक्षेप संभव होगा। उन्होंने कहा, "नशा एक जटिल सामाजिक और स्वास्थ्य समस्या है, जिसका समाधान विशेषज्ञों की मदद से ही संभव है।"
राज्य में ओपिओइड के दुरुपयोग, खासकर युवाओं में, चिंताजनक स्तर तक बढ़ा है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्रवृत्ति सामाजिक तनाव, आघात और मादक पदार्थों की बढ़ती उपलब्धता के कारण बढ़ रही है। भारत में व्यसन और पुनर्वास से जुड़े पाठ्यक्रमों की सीमित उपलब्धता भी इस संकट को गहराने वाली एक प्रमुख वजह रही है।
यह डिप्लोमा न केवल व्यावसायिक और कौशल-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अनुरूप है, बल्कि व्यावहारिक अनुभव के साथ छात्रों को जमीनी स्तर पर काम करने के लिए भी तैयार करता है।
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